लेकिन बहुत लोग ऐसे भी होते हैं जो दूसरो के घर में अमन-चैन और खुशहाली देखकर जला करते है। उनके पड़ोसी राज्य प्रतापगढ़ का राजा बलराम सिंह ने अकारण ही राजगढ़ पर हमला बोल दिया। राजा सूर्यसेन इस अकारण युद्ध के लिए तैयार नहीं था। उसके पास बड़ी सेना भी नहीं थी। उन्होंने सोचा कि यदि युद्ध छिड़ गया तो बेकार ही राज्य के हजारों निरपराध व्यक्ति मारे जाएंगे, व्यर्थ में खून खराबा होगा। बहुत सोच-विचार के बाद आधी रात के समय जब सारा नगर गहरी नींद में सो रहा था। राजा सूर्य सेन ने अपना राज्य छोड़ दिया। उसने सन्यासी का भेष बनाया और प्रतापगढ़ में जाकर एक मंदिर में रहने लगा। राजा के साथ उसकी रानी भी थी। साध्वी वेश में वह भी पति के साथ रहने लगी। कुछ महीने पश्चात रानी की कोख में एक सुंदर से बालक ने जन्म लिया। राजा ने उसका नाम वीरसेन रखा। जब वीरसेन शिक्षा प्राप्त करने की अवस्था को पहुंचा तो राजा ने उसे एक आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज दिया। एक दिन राजा बलराम सिंह को उसके दूतो ने खबर दी कि राजा सूर्यसेन राजगढ़ से पलायन करके वर्षों से अपनी रानी के साथ उन्ही के राज्य में साधु वेश में रह रहा है। सुरेशन और उसकी पत्नी को बंदी बना लिया गया और मृत्युदंड का आदेश दिया गया।
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अपने माता-पिता के बंदी होने और मृत्युदंड का समाचार सुनकर पुत्र वीरसेन उनके अंतिम दर्शनों के लिए कारागार पहुंचा। पुत्र को प्यार करके माता पिता ने उसे यशस्वी, तेजस्वी और दीर्घजीवी होने का आशीर्वाद दिया। पिता ने पुत्र को शिक्षा दी कहा, पुत्र जीवन में मेरी इन बातों को हमेशा ध्यान रखना।
पहली:- न अधिक देखो, न कम देखो।
दूसरी:- विश्वासघात करना महापाप है।
तीसरी:- शत्रुता और हिंसा को प्रेम रूपी शस्त्र से ही काटा जा सकता है।
चौथी:- अहिंसा हथियार ही सबसे अधिक धारदार और शाश्वत है।
राजा सूर्यसेन और उसकी पत्नी को फांसी दे दी गई। वीरसेन अब अकेला और बेसहारा रह गया। उसने राजा बलराम सिंह के महावत के यहां नौकरी कर ली। राजा बलराम सिंह तथा अन्य किसी कर्मचारी को यह पता नहीं था कि वीरसेन राजा सूर्य सेन का पुत्र है। वीरसेन को वीणा बजाने का शौक था। वह प्रतिदिन सवेरे वीणा पर तान छेडता था। एक दिन उसकी बिना की मधुर तान के स्वर राजा बलराम सिंह के कानों में पड़े। वह उसके सुरो में खो गया। राजा ने माहावत को बुलाया और पूछा कि तुम्हारे घर में सवेरे सवेरे इतनी मनमोहक वीणा कौन बजाता है?
महावत ने उत्तर दिया-" महाराज, वह एक अनाथ लड़का है। मैंने उसे घर के कामकाज के लिए थोड़े से पैसे और भोजन पर नौकर रखा है। उसे ही वीणा बजाने का शौक है।"
राजा ने कहा-" उस लड़के को मेरे पास लेकर आना। महावत वीरसेन को राजा के पास ले गया। राजा ने देखा कि वीरसेन एक सुंदर, गोरवर्ण और आकर्षक व्यक्तित्व वाला युवक है। वह एक राजा का लड़का लगता था। राजा बलराम सिंह ने उसे अपने अंगरक्षक का पद दे दिया। एक दिन राजा बलराम सिंह वन में शिकार खेलने गए। घने जंगल में वह अपने साथियों से बिछड़ गए। एक घोड़े पर राजा था। दूसरे घोड़े पर से वीरसेन था। दोनों थक चुके थे। कुछ देर विश्राम करने के लिए एक वृक्ष की छाया में जा बैठे। राजा थका हुआ था, गर्मी तप रही थी। राजा वीर सिंह की जांग को तकिया बना कर गहरी नींद में सो गया। राजा गहरी नींद में था। वीरसेन के हृदय में बदले की आग धधकने लगी यह वही व्यक्ति है जिसे ने बिना किसी दोष के उसके माता-पिता को फांसी पर लटकाया था। आज मौका है। उनके खून का बदला इसके प्राण ले कर चुका लू। उसने म्यान से तलवार खींची और राजा पर प्रहार करने के लिए जैसे ही तलवार ऊपर उठाई तभी उसे पिता का उपदेश याद आ गया।-" हिंसा कभी प्रतिहिंसा द्वारा समाप्त नहीं होती"। वह वाक्य याद करके उसने अपनी तलवार चुपचाप म्यान में रख ली। थोड़ी देर में ही राजा की आंख खुल गई। बैठते हुए राज ने कहा" मैंने बड़ा भयानक सपना देखा है। मेरी गर्दन काटने के लिए कोई नंगी तलवार हाथ में लिए खड़ा है। वीरेन बोला-" आपका सपना गलत नहीं था। मैं महाराज शूरसेन का पुत्र हूं। आपने मेरे माता-पिता को मौत के घाट उतार दिया था। उसी के प्रतिशोध में अपनी तलवार से मैं आपकी जान लेने जा रहा था।"
राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा-"तब तुमने मुझे मारा क्यों नहीं। तुम मुझे आसानी से मार सकते थे।" वीरसेन ने उत्तर दिया -" हां राजन, तुम्हें जान से मारने में मुझे कोई बाधा नहीं थी। आज आपकी जान मेरे पिता जी ने मृत्यु से पूर्व जो चार सीख मुझे दी थी उन्हीं के कारण बच गई।
उत्सुकतावश राजा ने वीरसेन से पूछा-" वे चार सीख क्या थी, मुझे भी बताओ पुत्र?" वीरसेन ने एक-एक करके सभी सीख बता दी। राजा सिखों को समझ चुका था।
उन्होने वीर सिंह को गले लगा लिया। राज्य में लौट कर उन्होंनें वीरसेन को राजगढ़ का राजा बनाने की घोषणा कर दी और अपनी पुत्री चंद्रिका का विवाह उसके साथ में बड़ी धूमधाम से करा दिया।
सच है अहिंसा की ढाल हिंसा के तलवार से कहीं अधिक मजबूत है हिंसा तो बर्बादी का रास्ता है।